Monday, 7 July 2014

मुस्लिम नहीं फिर भी 31 साल से रख रहा है रोजा




मधेपुरा: बिहार के मधेपुरा में एक ऐसे पुलिस अधिकारी हैं जो न केवल महापर्व छठ में व्रत करते हैं, बल्कि पाक रमजान के महीने में रोजा भी रखते हैं। रमजान के दौरान वह इस्लाम धर्म के पूरे नियमों का पालन भी करते हैं। मधेपुरा जिले के उदाकिशुनगंज थाने में सहायक निरीक्षक (एसआई) के पद पर कार्यरत मोहन मंडल इन दिनों रमजान के इस पाक महीने में रोजा रखे हुए हैं।


मंडल ने आईएएनएस को बताया, ‘‘मैंने सन् 1983 में पहली बार रोजा रखा था। एक मुस्लिम मित्र को रोजा रखते देख मेरे मन में भी यह भावना आई। तभी से मैं हर साल रमजान के महीने में रोजा रखता आ रहा हूं। रोजा रखने से शारीरिक चुस्ती बनी रहती है।’’ उनका कहना है कि पूरी दुनिया के किसी भी धर्म में कोई ऐसा दूसरा पर्व नहीं है जिसमें इतनी बड़ी संख्या में लोग एक साथ जमा होकर एक तय समय पर रोजा खोलते हों और साथ मिलकर सहरी करते हों। सबसे बड़ी खासियत है कि इसमें अमीर-गरीब का कोई भेदभाव नहीं होता।’’

मोहन मंडल कहते हैं, ‘‘मैं हिंदू हूं और हिंदू देवी-देवताओं की आराधना और पूजा भी करता हूं। प्रति वर्ष महापर्व छठ में सूर्योपासना करता हूं और उपवास रखता हूं। परंतु मेरी आस्था अल्लाह के प्रति भी उतनी ही है।’’ उनका मानना है कि ईश्वर एक है। खुदा हो या भगवान, सभी शांति का ही संदेश देते हैं। ऐसे में किसी की भी पूजा और आराधना करना पुण्य का कार्य है।

बिहार के भागलपुर जिले के अम्मापुर गांव के रहने वाले मंडल कहते हैं कि इसी वर्ष अगस्त महीने में वह सरकारी सेवा से निवृत्त हो जाएंगे। वह बताते हैं कि वह ड्यूटी में रहकर या घर पर रहकर भी रोजा खोलते हैं। जब मुस्लिम विरादरी से न्यौता आता है, तब उनके साथ भी जाकर वह रोजा खोलते हैं। क्या भविष्य में भी आपका रोजा रखना जारी रहेगा? यह पूछने पर मोहन मंडल कहते हैं, ‘‘अब तो मौत के साथ ही मेरा रोजा रखना खत्म होगा। रोजा रखने से या पूजा-पाठ करने से मुझे जो सुकून मिलता है वह किसी और काम में नहीं मिलता।’’


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