Friday, 1 July 2016

कुरआन की चौबीस आयतें part 1 (aetrazat)


आर्यसमाज ,स्वामी लक्ष्मिशंकाराचार्य

कुछ लोग कुरआन की 24 आयतों वाला एक पैम्फलेट कई सालों से देश की जनता के बीच बाँट रहे हैं जो भारत की लगभग सभी मुख्य क्षेत्रीय भाषों में छपता है । इस
पैम्फलेट का शीर्षक है ' कुरआन की कुछ आयतें जो इमानवालों ( मुसलमानों )
को अन्य धर्मावलम्बियों से झगड़ा करने का आदेश देती हैं । जैसा की किताब
की शुरुआत में ' जब मुझे सत्य की ज्ञान हुआ ' में मैंने लिखा है की इसी
पर्चे को पढ़ कर मैं भ्रमित हो गया था । यह परचा जैसा छपा है, वैसा ही
नीचे दे रहा हूँ : कुरआन की कुछ आयतें जो इमानवालों ( मुसलमानों ) को
अन्य धर्मावलम्बियों से झगड़ा करने का आदेश देती हैं ।

1 -" फिर, जब हरामके महीने बीत जाएं , तो ' मुशरिकों' को जहाँ कहीं पाओ क़त्ल   करो, और पकड़ो, और उन्हें घेरो, और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो ।
 फिर यदि वे'तौबा ' कर लें नमाज़ क़ायम करें और, ज़कात दें, तो उनका मार्ग छोड़ दो । नि:संदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करने वाला है ।"
- ( 10 ,9 ,5 )


2 -" हे ईमान' लेन वालो ! ' मुशरिक' ( मूर्तिपूजक ) नापाक हैं ।"
-( 10 ,9 , 28 ) 

3 -" नि: संदेह ' काफ़िर ' तुम्हारे खुले दुश्मन हैं ।"
- ( 5 ,4 ,101 )

4 - "
हे 'इमान' लाने वालों ! ( मुसलमानों ! ) उन ' काफ़िरों ' से लड़ो जो
तुम्हारे आस-पास हैं , और चाहिए कि वे तुममें सखती पायें ।"
- ( 11 ,9 ,123 )

5 - "
जिन लोगों ने हमारी 'आयतों ' का इंकार किया, उन्हें हम जल्द अग्नि
में झोंक देंगे । जब उनकी खालें पाक जायेंगी तो हम उन्हें दूसरी खालों
में बदल देंगे ताकि वे यातना का रसास्वादन कर लें । नि: संदेह अल्लाह
प्रभुत्वशाली तत्वदर्शी है । "
- ( 5 , 4 , 56 )

6 - '
हे ' ईमान ' लेन वालो ! ( मुसलमानों ! ) अपने बापों और भाइयों को
अपना मित्र मत बनाओ यदि वे ' ईमान ' की अपेक्षा ' कुफ़्र ' को पसंद करें ।
और तुम में से जो कोई उनसे मित्रता का नाता जोड़ेगा तो ऐसे ही लोग ज़ालिम
होंगे ।" - ( 10 , 9 ,23 )

7 - "
अल्लाह 'काफ़िर ' लोगों को मार्ग नहीं दिखता ।"
- ( 10 , 9 , 37 )

8 - "
हे 'ईमान' लेन वालों ! ------ और 'काफ़िरों' को अपना मित्र मत बनाओ
। अल्लाह से डरते रहो यदि तुम ईमान वाले हो ।" -
 ( 6 , 5 , 57 )

9 - "
फिट्कारे हुए लोग ( ग़ैरमुस्लिम ) जहाँ कहीं पाये जायेंगे पकड़े
जायेंगे और बुरी तरह क़त्ल किये जायेंगे ।"
 - ( 22 , 23 , 61 )

10 - " (
कहा जायेगा ) : निश्चेय ही तुम और वह जिसे तुम अल्लाह के सिवा
पूजते थे ' जहन्नम ' का इंधन हो । तुम अवश्य  उसके घाट उतरोगे ।"
- ( 17 , 21 , 98 )


11 - "
और उससे बढ़ कर ज़ालिम कौन होगा जिसे उसके ' रब ' की ' आयतों '
के द्वारा चेताया जाये , और फिर वह उनसे मुंह फेर ले । निश्चय ही 
हमें ऐसे अपराधियों से बदला लेना है ।"
- ( 22 , 32 , 22 , )

12 - '
अल्लाह ने तुमसे बहुत सी ' गनिमतों ' ( लूट ) का वादा किया है जो
तुम्हारे हाथ आयेंगी,"
- ( 26 , 48 , 20 )

13 - "
तो जो कुछ ' गनीमत ' ( लूट ) का माल तुमने हासिल किया है उसे '
हलाल ' व पाक समझ कर खाओ,"
- ( 10 , 8 , 69 )

14 - '
हे नबी ! ' काफ़िरों ' और ' मुनाफ़िकों ' के साथ जिहाद करो, और उन
पर सख्ती करो और उनका ठिकाना ' जहन्नम ' है , और बुरी जगह है
 जहाँ पहुंचे।"
- ( 28 , 66 , 9 )

15 "
तो अवश्य हम ' कुफ्र ' करने वालों को यातना का मज़ा चखाएंगे
,
और अवश्य ही हम उन्हें सबसे बुरा बदला देंगे उस कर्म का जो वे करते थे ।"
- ( 24 , 41 , 27 )

16 - "
यह बदला है अल्लाह के शत्रुओं का ( ' जहन्नम ' की ) आग । इसी में
उनका सदा घर है । इसके बदले में की हमारी ' आयतों ' का इंकार करते थे ।"
- ( 24 , 41 , 28 )17 - " "
नि: संदेह अल्लाह ने ' ईमान वालों (
मुसलमानों ) से उनके प्राणों और मालों को इसके बदले में ख़रीद लिया है कि
उनके लिये ' जन्नत ' है वे अल्लाह के मार्ग में लड़ते हैं तो मारते भी है
और मारे भी जाते हैं ।"
- ( 11 , 9 , 111 )


18 - "
अल्लाह ने इन मुनाफ़िक़ ( अर्ध मुस्लिम ) पुरूषों और मुनाफ़िक़
स्त्रियों और ' काफ़िरों ' से ' जहन्नुम ' कि आग का वादा किया है जिसमें
वे सदा रहेंगे । यही उन्हें बस है । अल्लाह ने उन्हें लानत की और उनके
लिये स्थायी यातना  हैं । "
- ( 10 , 9 , 68 )


19 -
हे नबी ! ' ईमान वालों ( मुसलमानों ) को लड़ाई पर
उभारो । यदि तुम में 20 जमे रहने वाले होंगे तो वे 200 पर प्रभुत्व
प्राप्त करेंगे , और यदि तुम में 100 हों तो 1000 ' काफ़िरों ' पर भरी
रहेंगे , क्योंकि वे ऐसे लोग हैं जो समझ बूझ नहीं रखते । "
- ( 10 , 8  , 65 )
20 - "
हे ईमान वालों ( मुसलमानों ) तुम ' यहूदियों ' और ' ईसाईयों ' को
मित्र न बनाओ । ये आपस में एक दूसरे के मित्र हैं । और जो कोई तुम में से
उनको मित्र बनायेगा, वह उन्हीं में से होगा । नि: संदेह अल्लाह ज़ुल्म
करने वालों को मार्ग नहीं दिखाता । "
- ( 6 , 5 , 51 , )


21 - "
किताब वाले " जो न अल्लाह अपर 'ईमान' लाते हैं न अंतिम दिन पर,
उसे ' हराम ' करते जिसे अल्लाह और उसके ' रसूल ' ने हराम ठहराया है, और न
सच्चे ' दीन ' को अपना ' दीन ' बनाते हैं , उनसे लड़ो यहाँ तक की वे
अप्रतिशिष्ट ( अपमानित ) हो कर अपने हाथों से ' जिज़्या '  देने लगें ।"
- ( 10 , 9 , 29 )22 " -----------
फिर हमनें उनके बीच 'क़ियामत ' के दिन
तक के लिए वैमनस्य और द्वेष की आग भड़का दी, और अल्लाह जल्द उन्हें बता
देगा जो कुछ वे करते रहे हैं ।"
-( 6 ,5 ,14 )


23 - "
वे चाहते हैं की जिस तरह से वे 'काफ़िर' हुए हैं उसी तरह से तुम भी
'
काफ़िर ' हो जाओ , फिर तुम एक जैसे हो जाओ तो उनमें से किसी को अपना
साथी न बनाना जब तक वे अल्लाह की राह
में हिजरत न करें, और यदि वे इससे फिर जावें तो उन्हें जहाँ कहीं पाओ
पकड़ो और उनका ( क़त्ल ) वध करो । और उनमें से किसी को साथी और सहायक मत
बनाना ।"
-( 5 , 4 , 89 )


24 - "
उन ( काफ़िरों ) से लड़ो ! अल्लाह तुम्हारे हाथों उन्हें यातना
देगा , और उन्हें रुसवा करेगा और उनके मुक़ाबले में तुम्हारी सहायता
करेगा , और 'ईमान ' वालों के दिल ठंडे करेगा ।"
-( 10 , 9 , 14 )



       उपरोक्त आयतों से स्पष्ट है की इनमें इर्ष्याद्वेष घृणा कपट,
लड़ाई-झगडालूट-मार और हत्या करने के आदेश मिलते हैं । इन्हीं कारणों से
देश व विदेश में मुस्लिमों के बीच दंगे हुआ करते हैं । दिल्ली प्रशासन ने
सन् 1985 में सर्व श्री इन्द्रसेन शर्मा और राजकुमार आर्य के विरुद्ध
दिल्ली के मैट्रोपोलिटन मैजिस्ट्रेट की अदालत मेंउक्त पत्रक छापने के
आरोप में मुक़द्दमा किया था । न्यायालय ने 31 जुलाई 1986 को उक्त दोनों
 " कुरआन मजीद की पवित्र
पुस्तक के प्रति आदर रखते हुए उक्त आयतों के सूक्षम अध्यन से स्पष्ट होता
है कि ये आयतें बहुत हानिकारक हैं और घृणा की शिक्षा देती हैंजिससे
मुसलमानों और देश के अन्य वर्गों में भेदभाव को बढ़ावा मिलने की संभावना
होती है महानुभावों को बरी करते हुए निर्णय दिया कि:      
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